इस्लामी सभ्यता जिसका प्रारंभ लगभग 1400 वर्ष पहले अरब प्रायद्वीप में हुआ था।


आज जबकि हम इक्कीसवीं शताब्दी में हैं, संसार के समस्त भागों में रहने वाले मुसलमानों की संख्या एक अरब से अधिक है। वे भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के नागरिक हैं, अलग-अलग भाषाएँ बोलते हैं, और उनका पहनावा भी अलग-अलग किस्म का है। वे जिन तरीकों से मुसलमान बने वे भी भिन्न-भिन्न प्रकार के थे, और वे परिस्थितियाँ भी भिन्न-भिन्न थीं, जिनके कारण वे अपने-अपने रास्तों पर चले गए। फिर भी, मुस्लिम समाजों की जड़ें एक अधिक एकीकृत अतीत में समाहित हैं, जिसका प्रारंभ लगभग 1400 वर्ष पहले अरब प्रायद्वीप में हुआ था।

600 से 1200 तक की अवधि में मिस्र से अफ़गानिस्तान तक के विशाल क्षेत्र इस्लामी सभ्यता का मूल क्षेत्र था। इन शताब्दियों में, इस्लामी समाज में अनेक प्रकार के राजनीतिक और सांस्कृतिक प्रतिरूप दिखते हैं। इस्लामी शब्द का प्रयोग यहाँ केवल उसके धार्मिक अर्थों में नहीं, बल्कि उस समूचे समाज और संस्कृति के लिए भी किया गया है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से इस्लाम से संबद्ध रही है।

इस समाज में जो कुछ भी घटित हो रहा था उसका उद्भव सीधे धर्म से नहीं हुआ था, बल्कि इसका उद्भव एक ऐसे समाज में हुआ था, जिसमें मुसलमानों को और उनके धर्म को सामाजिक रूप से प्रमुखता प्राप्त थी।



पथरीले टीले के ऊपर अब्द अल-मलिक द्वारा निर्मित चट्टान का गुम्बद, 
इस्लामी वास्तुकला का यह पहला बड़ा नमूना है। जेरूसलम नगर की मुस्लिम संस्कृति के प्रतीक रूप में इस स्मारक का निर्माण किया गया। पैगम्बर मुहम्मद की स्वर्ग की ओर की रात्रि यात्र (मिराज) से यह स्मारक जुड़ गया। यह इसका रहस्यमय महत्त्व है।

सही मायने में इस्लाम के इतिहास ग्रंथ लिखे जाने का कार्य उन्नीसवीं शताब्दी में जर्मनी और नीदरलैंड के विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसरों द्वारा शुरू किया गया। मध्य पूर्व और उत्तरी अफ़्रीका में औपनिवेशिक हितों से फ्रांसीसी और ब्रिटिश शोधकर्ताओं को भी इस्लाम का अध्ययन करने के लिए प्रोत्साहन मिला।

ईसाई पादरियों ने इस्लाम के इतिहास की ओर बारीकी से ध्यान दिया और कुछ अच्छी पुस्तकें लिखीं, हालाँकि उनकी दिलचस्पी मुख्यतः इस्लाम की तुलना ईसाई धर्म से करने में रही। ये विद्वान, जिन्हें प्राच्यविद् कहा जाता है, अरबी और फ़ारसी के ज्ञान के लिए और मूल ग्रंथों के आलोचनात्मक विश्लेषण के लिए प्रसिद्ध हैं। इग्नाज़ गोल्डजि़हर (Ignaz Goldziher) हंगरी के एक यहूदी थे, जिन्होंने काहिरा के इस्लामी कॉलेज (अल-अज़हर) में अध्ययन किया और जर्मन भाषा में इस्लामी कानून और धर्मविज्ञान के बारे में नयी राह दिखाने वाली पुस्तकें लिखीं।

इस्लाम के बीसवीं शताब्दी के इतिहासकारों ने अधिकतर प्राच्यविदों की रुचियों और उनके तरीकों का ही अनुसरण किया है। उन्होंने नए विषयों को शामिल करके इस्लाम के इतिहास के दायरे का विस्तार किया है, और अर्थशास्त्र, मानव-विज्ञान और सांख्यिकी जैसे संबद्ध विषयों का इस्तेमाल करके प्राच्य अध्ययन के बहुत-से पहलुओं का परिष्करण किया है।

इस्लाम का इतिहास-लेखन इस बात का एक अच्छा उदाहरण है कि इतिहास के आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल करके धर्म का अध्ययन किस प्रकार किया जा सकता है, ऐसे लोगों द्वारा जो स्वयं अध्ययन करने वाले धर्म के अनुयायी न हों।

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