हमारी पृथ्वी का आंतरिक भाग (the interior of the earth)


एक प्याज की तरह पृथ्वी भी एक के ऊपर एक संकेंद्री (Concentrated) परतों से बनी है । पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को पर्पटी कहते हैं।

यह सबसे पतली परत होती है। यह महाद्वीपीय structure में 35 किलोमीटर एवं समुद्री सतह में केवल 5 किलोमीटर तक है। महाद्वीपीय structure मुख्य रूप से सिलिका एवं ऐलुमिना जैसे खनिजों से बनी है। इसलिए इसे सिएल (सि-सिलिका तथा एल-एलुमिना) कहा जाता है। महासागर की पर्पटी मुख्यतः सिलिका एवं मैग्नीशियम की बनी है इसलिए इसे सिमै (सि-सिलिका तथा मै-मैग्नीशियम) कहा जाता है ।

पर्पटी के ठीक नीचे मैंटल होता है जो 2900 किलोमीटर की गहराई तक फैला होता है। इसकी सबसे आंतरिक परत क्रोड है, जिसकी त्रिज्या लगभग 3500 किलामीटर है। यह मुख्यतः निकल एवं लोहे की बनी होती है तथा इसे निफ़े (नि-निकिल तथा फ़े-फ़ैरस) कहते हैं। केंद्रीय क्रोड का तापमान एवं दाब काफी उच्च होता है।

पृथ्वी की पर्पटी अनेक प्रकार के शैलों से बनी है। पृथ्वी की पर्पटी बनाने वाले खनिज पदार्थ के किसी भी प्राकृतिक पिंड को शैल कहते हैं। शैल विभिन्न रंग, आकार एवं गठन की हो सकती हैं। मुख्य रूप से शैल तीन प्रकार की होती हैं आग्नेय (Ignius), अवसादी (Sedimentary) एवं कायांतरित (Metamorphic) शैल।

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द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस हो जाता है। इस प्रकार बने शैल को आग्नेय शैल कहते हैं। इन्हें प्राथमिक शैल भी कहते हैं। शैल लुढ़ककर, चटककर तथा एक-दूसरे से टकराकर छोटे-छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं। इन छोटे कणों को अवसाद कहते हैं। ये अवसाद हवा, जल आदि के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाकर, जमा कर दिए जाते हैं। ये अवसाद दबकर एवं कठोर होकर शैल की परत बनाते हैं। इस प्रकार की शैलों को अवसादी शैल कहते है। उदाहरण के लिए, बलुआ पत्थर, रेत के दानों से बनता है। इन शैलों में पौधों, जानवरों एवं अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं, जो कभी इन शैलों पर रहे हैं, के जीवाश्म भी हो सकते हैं। आग्नेय एवं अवसादी शैल उच्च ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैलों में परिवर्तित हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, चिकनी मिट्टी स्लेट में एवं चूना पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है।

शैल चक्र क्या है ?

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि किन्हीं निश्चित दशाओं में एक प्रकार की शैल चक्रीय तरीके से एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं। एक शैल से दूसरे शैल में परिवर्तन होने की इस प्रक्रिया को शैल चक्र (Shell cycle) कहते हैं। आप जानते हैं कि द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल बन जाता है। ये आग्नेय शैल छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होकर अवसादी शैल का निर्माण करते हैं। ताप एवं दाब के कारण ये आग्नेय एवं अवसादी शैल कायांतरित शैल में बदल जाते हैं। अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैल पुनः पिघलकर द्रवित मैग्मा बन जाती है। यह द्रवित मैग्मा पुनः ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल में परिवर्तित हो जाता है ।

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