प्राकृतिक पर्यावरण तथा मानवीय पर्यावरण : हमारे जीवन का मूल आधार
पयार्वरण का महत्व जानना हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि पर्यावरण हमारे जीवन का मूल आधार है। यह हमें साँस लेने के लिए हवा, पीने के लिए जल, खाने के लिए भोजन एवं रहने के लिए भूमि प्रदान करता है।
भूमि, जल, वायु, पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण बनाते हैं। पृथ्वी की ठोस पर्पटी या कठोर ऊपरी परत को स्थलमंडल कहते हैं। यह चट्टानों एवं खनिजों से बना होता है एवं मिट्टी की पतली परत से ढ़ँका होता है। यह पहाड़, पठार, मैदान, घाटी आदि जैसी विभिन्न स्थलाकृतियों वाला विषम धरातल होता है। ये स्थलाकृतियाँ महाद्वीपों के अलावा महासागर की सतह पर भी पाई जाती हैं। स्थलमंडल वह क्षेत्र है, जो हमें वन, कृषि एवं मानव बस्तियों के लिए भूमि, पशुओं को चरने के लिए घासस्थल प्रदान करता है। यह खनिज संपदा का भी एक स्रोत है।
जल के क्षेत्र को जलमंडल कहते हैं। यह जल के विभिन्न स्रोतों जैसे नदी, झील, समुद्र, महासागर आदि जैसे विभिन्न जलाशयों से मिलकर बनता है। यह सभी प्राणियों के लिए आवश्यक है। पादप एवं जीव-जंतु मिलकर जैवमंडल या सजीव संसार का निर्माण करते हैं। यह पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र है, जहाँ स्थल, जल एवं वायु मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं।
पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल अपने चारों ओर के वायुमंडल को थामे रखता है। यह सूर्य की झुलसाने वाली गर्मी एवं हानिकारक किरणों से हमारी रक्षा करता है। इसमे कई प्रकार की गैस, धूल-कण एवं जलवाष्प उपस्थित रहते हैं। वायुमंडल में परिवर्तन होने से मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन होता है।
मानव अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया करता है और उसमें अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करता है। प्रारंभिक मानव ने स्वयं को प्रकृति के अनुरूप बना लिया था। उनका जीवन सरल था एवं आस-पास की प्रकृति से उनकी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थी।
समय के साथ कई प्रकार की आवश्यकताएँ बढ़ीं। मानव ने पर्यावरण के उपयोग और उसमें परिवर्तन करने के कई तरीके सीख लिए। उसने फ़सल उगाना, पशु पालना एवं स्थायी जीवन जीना सीख लिया। पहिए का आविष्कार हुआ, आवश्यकता से अधिक अन्न उपजाया गया, वस्तु-विनिमय पद्धति का विकास हुआ, व्यापार आरंभ हुआ एवं वाणिज्य का विकास हुआ। औद्योगिक क्रांति से बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रारंभ हो गया। परिवहन तेज गति से प्रारंभ हुआ। सूचना क्रांति से पूरे विश्व में संचार, सहज और द्रुत हो गया।
प्राकृतिक एवं मानवीय पर्यावरण के महत्व को समझना और इनके बीच सही संतुलन होना आवश्यक है।
ये भी जानिए >> हमारी पृथ्वी का आंतरिक भाग
भूमि, जल, वायु, पेड़-पौधे एवं जीव-जंतु मिलकर प्राकृतिक पर्यावरण बनाते हैं। पृथ्वी की ठोस पर्पटी या कठोर ऊपरी परत को स्थलमंडल कहते हैं। यह चट्टानों एवं खनिजों से बना होता है एवं मिट्टी की पतली परत से ढ़ँका होता है। यह पहाड़, पठार, मैदान, घाटी आदि जैसी विभिन्न स्थलाकृतियों वाला विषम धरातल होता है। ये स्थलाकृतियाँ महाद्वीपों के अलावा महासागर की सतह पर भी पाई जाती हैं। स्थलमंडल वह क्षेत्र है, जो हमें वन, कृषि एवं मानव बस्तियों के लिए भूमि, पशुओं को चरने के लिए घासस्थल प्रदान करता है। यह खनिज संपदा का भी एक स्रोत है।
जल के क्षेत्र को जलमंडल कहते हैं। यह जल के विभिन्न स्रोतों जैसे नदी, झील, समुद्र, महासागर आदि जैसे विभिन्न जलाशयों से मिलकर बनता है। यह सभी प्राणियों के लिए आवश्यक है। पादप एवं जीव-जंतु मिलकर जैवमंडल या सजीव संसार का निर्माण करते हैं। यह पृथ्वी का वह संकीर्ण क्षेत्र है, जहाँ स्थल, जल एवं वायु मिलकर जीवन को संभव बनाते हैं।
पृथ्वी के चारों ओर फैली वायु की पतली परत को वायुमंडल कहते हैं। पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल अपने चारों ओर के वायुमंडल को थामे रखता है। यह सूर्य की झुलसाने वाली गर्मी एवं हानिकारक किरणों से हमारी रक्षा करता है। इसमे कई प्रकार की गैस, धूल-कण एवं जलवाष्प उपस्थित रहते हैं। वायुमंडल में परिवर्तन होने से मौसम एवं जलवायु में परिवर्तन होता है।
मानव अपने पर्यावरण के साथ पारस्परिक क्रिया करता है और उसमें अपनी आवश्यकता के अनुसार परिवर्तन करता है। प्रारंभिक मानव ने स्वयं को प्रकृति के अनुरूप बना लिया था। उनका जीवन सरल था एवं आस-पास की प्रकृति से उनकी आवश्यकताएँ पूरी हो जाती थी।
समय के साथ कई प्रकार की आवश्यकताएँ बढ़ीं। मानव ने पर्यावरण के उपयोग और उसमें परिवर्तन करने के कई तरीके सीख लिए। उसने फ़सल उगाना, पशु पालना एवं स्थायी जीवन जीना सीख लिया। पहिए का आविष्कार हुआ, आवश्यकता से अधिक अन्न उपजाया गया, वस्तु-विनिमय पद्धति का विकास हुआ, व्यापार आरंभ हुआ एवं वाणिज्य का विकास हुआ। औद्योगिक क्रांति से बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रारंभ हो गया। परिवहन तेज गति से प्रारंभ हुआ। सूचना क्रांति से पूरे विश्व में संचार, सहज और द्रुत हो गया।
प्राकृतिक एवं मानवीय पर्यावरण के महत्व को समझना और इनके बीच सही संतुलन होना आवश्यक है।
ये भी जानिए >> हमारी पृथ्वी का आंतरिक भाग
No comments: