व्यापार से साम्राज्य तक {भाग-1}


क्या आप जानते हैं कि अंग्रेज पहले-पहल एक छोटी-सी व्यापारिक कंपनी के रूप में भारत आए थे और यहाँ के इलाकों पर कब्जे में उनकी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी? तो फिर ऐसा कैसे हुआ कि एक दिन वे इस विशाल साम्राज्य के स्वामी बन बैठे?

मुगल बादशाहों में औरंगजेब आखिरी शक्तिशाली बादशाह थे। उन्होंने वर्तमान भारत के एक बहुत बड़े हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। 1707 में उनकी मृत्यु के बाद बहुत सारे मुगल सूबेदार और बड़े-बड़े जमींदार अपनी ताकत दिखाने लगे थे। उन्होंने अपनी क्षेत्रीय रियासतें कायम कर ली थीं। जैसे-जैसे विभिन्न भागों में ताकतवर क्षेत्रीय रियासतें सामने आने लगीं, दिल्ली अधिक दिनों तक प्रभावी केन्द्र के रूप में नहीं रह सकी।

पूर्व में ईस्ट इंडिया कंपनी का आना

सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम से चार्टर अर्थात इजाजतनामा हासिल कर लिया जिससे कंपनी को पूरब से व्यापार करने का एकाधिकार मिल गया। इस इजाजतनामे का मतलब यह था कि इंग्लैंड की कोई और व्यापारिक कंपनी इस इलाके में ईस्ट इंडिया कंपनी से होड़ नहीं कर सकती थी। इस चार्टर के सहारे कंपनी समुद्र पार जाकर नए इलाकों को खँगाल सकती थी, वहाँ से सस्ती कीमत पर चीजें ख़रीद कर उन्हें यूरोप में ऊँची कीमत पर बेच सकती थी। कंपनी को दूसरी अंग्रेज व्यापारिक कंपनियों से प्रतिस्पर्धा का कोई भय नहीं था। उस जमाने में वाणिज्यिक कंपनियाँ मोटे तौर पर प्रतिस्पर्धा से बचकर ही मुनाफा कमा सकती थीं। अगर कोई प्रतिस्पर्धी न हो तभी वे सस्ती चीजें ख़रीदकर उन्हें ज़्यादा कीमत पर बेच सकती थीं।

ईस्ट इंडिया कंपनी का बंगाल में व्यापार शुरू करना

पहली इंग्लिश फ़ैक्टरी 1651 में हुगली नदी के किनारे शुरू हुई। कंपनी के व्यापारी यहीं से अपना काम चलाते थे। इन व्यापारियों को उस जमाने में फेक्टर कहा जाता था। इस फैक्टरी में वेयरहाउस था जहाँ निर्यात होने

वाली चीजों को जमा किया जाता था। यहीं पर उसके दफ्ऱतर थे जिनमें कंपनी के अप़फ़सर बैठते थे। जैसे-जैसे व्यापार फैला कंपनी ने सौदागरों और व्यापारियों को फैक्टरी के आस-पास आकर बसने के लिए प्रेरित किया।

1696 तक कंपनी ने इस आबादी के चारों तरफ एक किला बनाना शुरू कर दिया था। दो साल बाद उसने मुगल अफसर को रिश्वत देकर तीन गाँवों की जमींदारी भी ख़रीद ली। इनमें से एक गाँव कालीकाता था जो बाद में कलकत्ता बना। अब इसे कोलकाता कहा जाता है।

कंपनी ने मुगल सम्राट औरंगजेब को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि वह कंपनी को बिना शुल्क चुकाए व्यापार करने का फरमान जारी कर दे। कंपनी ज़्यादा से ज़्यादा रियायतें हासिल करने और पहले से मौजूद अधिकारों का ज़्यादा से ज़्यादा फायदा उठाने में लगी हुई थी।


उदाहरण के लिए, औरंगजेब के फरमान से केवल कंपनी को ही शुल्क मुक्त व्यापार का अधिकार मिला था। कंपनी के जो अप़फ़सर निजी तौर पर व्यापार चलाते उन्हें यह छूट नहीं थी। लेकिन उन्होंने भी शुल्क चुकाने से इनकार कर दिया। इससे बंगाल में राजस्व वसूली बहुत कम हो गई। ऐसे में भला बंगाल के नवाब मुर्शिद कुली खान विरोध क्यों न करते?

व्यापार से युद्धों तक

अठारहवीं सदी की शुरुआत में कंपनी और बंगाल के नवाबों का टकराव काफी बढ़ गया था। औरंगजेब की मृत्यु के बाद बंगाल के नवाब अपनी ताकत दिखाने लगे थे। उस समय दूसरी क्षेत्रीय ताकतों की स्थिति भी ऐसी ही थी। मुर्शिद कुली खान के बाद अली वर्दी खान और उसके बाद सिराजुद्दौला बंगाल के नवाब बने। ये सभी शक्तिशाली शासक थे। उन्होंने कंपनी को रियायतें देने से मना कर दिया। व्यापार का अधिकार देने के बदले

कंपनी से नजराने माँगे, उसे सिक्के ढालने का अधिकार नहीं दिया, और उसकी किलेबंदी को बढ़ाने से रोक दिया। कंपनी पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए उन्होंने दलील दी कि उसकी वजह से बंगाल सरकार की राजस्व वसूली कम होती जा रही है और नवाबों की ताकत कमजोर पड़ रही है। कंपनी टैक्स चुकाने को तैयार नहीं थी, उसके अफसरों ने अपमानजनक चिट्ठियाँ लिखीं और नवाबों व उनके अधिकारियों को अपमानित करने का प्रयास किया।

कंपनी का कहना था कि स्थानीय अधिकारियों की बेतुकी माँगों से कंपनी का व्यापार तबाह हो रहा है। व्यापार तभी फल-फूल सकता है जब सरकार शुल्क हटा ले। कंपनी को इस बात का भी यकीन था कि अपना व्यापार फैलाने के लिए उसे अपनी आबादी बढ़ानी होगी। गाँव ख़रीदने होंगे और किलों का पुनर्निर्माण करना होगा।

ये टकराव दिनोदिन गंभीर होते गए अन्ततः इन टकरावों की परिणति प्लासी के प्रसिद्ध युद्ध के रूप में हुई।


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