पुराने और नए धर्म :700 से 1750 ई०:


700 से 1750 ईसवी तक लगभग हजार वर्षों के दौरान धार्मिक परंपराओं में कई बड़े परिवर्तन आए। दैविक तत्व में लोगों की आस्था कभी-कभी बिल्कुल ही वैयक्तिक स्तर पर होती थी मगर आम तौर पर इस आस्था का स्वरूप सामूहिक होता था। किसी दैविक तत्व में सामूहिक आस्था, यानि धर्म, प्रायः स्थानीय समुदायों के सामाजिक और आर्थिक संगठन से संबंधित होती थी। जैसे-जैसे इन समुदायों का सामाजिक संसार बदलता गया वैसे ही इनकी आस्थाओं में भी परिवर्तन आता गया। 

आज हम जिसे हिंदू धर्म कहते हैं, उसमें भी इसी युग में महत्त्वपूर्ण बदलाव आए। इन परिवर्तनों में से कुछ थे नए देवी-देवताओं की पूजा, राजाओं द्वारा मंदिरों का निर्माण और समाज में पुरोहितों के रूप में ब्राह्मणों का बढ़ता महत्त्व तथा बढ़ती सत्ता आदि।

संस्कृत ग्रंथों के ज्ञान के कारण समाज में ब्राह्मणों का बड़ा आदर होता था। इनके संरक्षक थे, नए-नए शासक जो स्वयं प्रतिष्ठा की चाह में थे। इन संरक्षकों का समर्थन होने के कारण समाज में इनका दबदबा और भी बढ़ गया था।



इस युग में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन भक्ति की अवधारणा के रूप में आया। इसमें ईश्वर की कल्पना एक ऐसे प्रेमल ईष्ट देवी-देवता के रूप में की गई थी, जिस तक पुजारियों के विशद कर्मकांड के बिना ही भक्त स्वयं पहुँच सकें। यही वह युग था जिसमें इस उपमहाद्वीप में नए-नए धर्मों का भी आगमन हुआ। कुरान शरीफ का संदेश भारत में पहले पहल सातवी सदी में व्यापारियाें और आप्रवासियों के जरिए पहुँचा। मुसलमान, कुरान शरीफ को अपना धर्मग्रंथ मानते हैं, केवल एक ईश्वर अल्लाह की सत्ता को स्वीकार करते हैं जिसका प्रेम, करुणा और उदारता अपने में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को गले लगाता है चाहे उस व्यक्ति की सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी रही हो।

कई शासक इस्लाम और इसके विद्वान धर्मशास्त्रियों और न्याय-शास्त्रियों अर्थात् उलेमा को संरक्षण देते थे। हिंदू धर्म की ही भाँति इस्लाम के अनुयायी भी अपने धर्म की अलग-अलग तरह से व्याख्या करते थे। मुसलमानों में कुछ शिया थे जो पैगंबर साहब के दामाद अली को मुसलमानों का विधिसम्मत नेता मानते थे, और कुछ सुन्नी थे जो खलीफाओं के प्रभुत्व को स्वीकार करते थे। 

इस्लाम के आरंभिक दौर में इस धर्म का नेतृत्व करने वाले खलीफ़ा कहलाते थे और आगे भी इनकी परंपरा चलती रही। इस्लामी न्याय सिद्धांत (विशेषकर भारत में हनफी और शफ़ी ऐसे सिद्धातं हैं) की विभिन्न परपंराआें में भी कई महत्त्वपूर्ण अंतर रहे हैं। ऐसे ही धर्म-सिद्धांतों तथा रहस्यवादी विचारों को लेकर भिन्नताएँ देखने को मिलती हैं।


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