भारतीय स्वतंत्रता के बाद विकास की योजनाएँ


भारत और भारतीयों को गरीबी से मुक्त कराने और आधुनिक तकनीकी एवं औद्योगिक आधार निर्मित करना नए भारत का एक बड़ा लक्ष्य था। 

1950 में सरकार ने आर्थिक विकास के लिए नीतियाँ बनाने और उनको लागू करने के लिए एक ‘योजना आयोग’ का गठन किया। इस बारे में ज्यादातर सहमति थी कि भारत मिश्रित अर्थव्यवस्था के रास्ते पर चलेगा। यहाँ राज्य और निजी क्षेत्र, दोनों ही उत्पादन बढ़ाने और रोजगार पैदा करने में महत्त्वपूर्ण और परस्पर पूरक भूमिका अदा करेंगे। किस क्षेत्र की क्या भूमिका होगी अर्थात कौन से उद्योग सरकार द्वारा और कौन से उद्योग बाजार द्वारा यानी निजी उद्योगपतियों द्वारा लगाए जाएँगे, विभिन्न क्षेत्रें और राज्यों के बीच किस तरह का संतुलन बनाया जायेगा इन सबको परिभाषित करना योजना आयोग का
काम था।

1956 में दूसरी पंचवर्षीय योजना तैयार की गई। इस योजना में इस्पात जैसे भारी उद्योगों और विशाल बाँध परियोजनाओं आदि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। ये काम सरकारी नियंत्रण के अंतर्गत रखे गए। भारी उद्योग पर यह जोर और अर्थव्यवस्था की राज्य नियंत्रण की कोशिशें अगले कुछ दशकों तक आर्थिक नीति को प्रभावित करती रहीं। 

इस पद्धति के बहुत सारे समर्थक थे तो कुछ मुखर विरोधी भी थे। कुछ लोगों को लगता था कि इस प्रणाली में खेती पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा रहा है। कुछ लोगों का कहना था कि प्राथमिक शिक्षा की उपेक्षा हो रही है। कुछ अन्य लोगों का मानना था कि आर्थिक नीतियों के कारण पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों पर उचित ध्यान नहीं दिया गया है। 

महात्मा गांधी की अनुयायी मीरा बहन ने 1949 में लिखा था, " विज्ञान और मशीनरी के द्वारा उसे (मानवता को) कुछ समय तक भारी फायदा हो सकता है लेकिन आखिरकार तबाही ही मिलेगी। हमें कुदरत के संतुलन का अध्ययन करके उसके नियमों के हिसाब से अपनी जिंदगी चलानी चाहिए, तभी हम स्वस्थ और नैतिक रूप से सभ्य प्रजाति के रूप में जीवित रह पाएँगे।"

improving knowledge blog
महानदी के पानी को रोकने के लिए बनाया गया पुल। 
स्वतंत्र भारत में पुल और बाँध विकास का प्रतीक बन गए थे।


ये भी जानिए...
दोस्तों के साथ साझा करें...…

No comments:



Recent Posts :

Powered by Blogger.