बाल विवाह के विरुद्ध कानून
उन्नीसवीं सदी के आखिरी हिस्से में महिला संगठनों के विकास तथा इन मुद्दों पर हो रहे लेखन की वजह से सुधारों के पक्ष में आवाज और मजबूत हुई। लोग बाल विवाह जैसी स्थापित परंपराओं को चुनौती देने लगे।
केन्द्रीय विधान सभा में बहुत सारे सांसद थे जिन्होंने बाल विवाह पर पाबंदी हेतु कानून बनाने के लिए संघर्ष किया। 1929 में बाल विवाह निषेध अधिनियम पारित किया गया। इस कानून के बारे में वैसी कड़वी बहसें और संघर्ष नहीं हुए जैसे पुराने सुधारवादी कानूनों के बारे में हुए थे।
इस कानून के अनुसार 18 साल से कम उम्र के लड़के और 16 साल से कम उम्र की लड़की की शादी नहीं की जा सकती। बाद में, यह उम्र बढ़ाकर क्रमशः 21 साल व 18 साल कर दी गई।
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