दो सौ साल पहले बच्चों की जिंदगी कैसी रही होगी ?


क्या आपने कभी सोचा है कि दो सौ साल पहले बच्चों की जिंदगी कैसी रही होगी? 

आजकल मध्यवर्गीय परिवारों की ज्यादातर लड़कियाँ स्कूल जाती हैं और उनमें से बहुत सारी लड़कों के साथ पढ़ती हैं। बड़ी होने पर उनमें से बहुत सारी लड़कियाँ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जाती हैं और विभिन्न प्रकार की नौकरियाँ करती हैं। 

कानूनन शादी के लिए उनका बालिग होना जरूरी है और कानून के अनुसार, वे किसी भी जाति व समुदाय के व्यक्ति से शादी कर सकती हैं। यहाँ तक कि विधवाएँ भी दोबारा शादी कर सकती हैं। पुरुषों की तरह सभी महिलाएँ वोट डाल सकती हैं और चुनाव लड़ सकती हैं। बेशक, सभी महिलाएँ इन अधिकारों का उपभोग नहीं कर पातीं। गरीबों को शिक्षा के मौके मुश्किल से मिलते हैं, कम मिलते हैं या मिल ही नहीं पाते। बहुत सारे परिवारों में लड़कियाँ अपनी इच्छानुसार पति भी नहीं चुन सकतीं। 

दो सौ साल पहले हालात बहुत भिन्न थे। ज्यादातर बच्चों की शादी बहुत कम उम्र में ही कर दी जाती थी।देश के कुछ भागों में विधवाओं से ये उम्मीद की जाती थी कि वे अपने पति की चिता के साथ ही जिंदा जल जाएँ। इस तरह स्वेच्छा से या जबरदस्ती मार दी गई महिलाओं को सती कहा जाता था। ‘सती’ शब्द का अर्थ ही सदाचारी महिला था। 

संपत्ति पर भी महिलाओं के अधिकार बहुत सीमित थे। शिक्षा तक महिलाओं की प्रायः कोई पहुँच नहीं थी। देश के बहुत सारे भागों में लोगों का विश्वास था कि अगर औरत पढ़ी-लिखी होगी तो वह जल्दी विधवा हो जाएगी।


दो सौ साल पहले बच्चों की जिंदगी


उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के दौरान इनमें से बहुत सारे कायदे-कानून और नजरिये धीरे-धीरे बदलते गए। आखिर ऐसा कैसे हुआ ? जानिए...परिवर्तन की दिशा में उठते कदम और विधवाओं की जिंदगी में बदलाव लाने की कोशिश




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