भारतीय स्वतंत्रता के 68 वर्ष बाद


15 अगस्त 2015 को हमने एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी 68वीं वर्षगाँठ मनाई थी। इस दौरान हमारे देश का प्रदर्शन कैसा रहा? संविधान में तय किए गए आदर्शों को हम किस हद तक साकार कर पाए?

भारत अभी भी एक है और लोकतांत्रिक राह पर चल रहा है। यह गर्व करने लायक उपलब्धि है। बहुत सारे विदेशी प्रेक्षकों का मानना था कि भारत एक देश के रूप में ज्यादा समय तक टिक नहीं पाएगा। उन्हें लगता था कि भारत का प्रत्येक क्षेत्र या भाषायी समूह अपने अलग राष्ट्र की माँग करेगा और उसके टुकड़े-टुकड़े हो जाएँगे। कुछ विशेषज्ञों को लगता था कि भारत सैनिक शासन के कब्जे में आ जाएगा। परंतु ये सारी आशंकाएँ निर्मूल साबित हुई हैं।

आजादी से अब तक 15 आम चुनाव हो चुके हैं और राज्यों तथा स्थानीय निकायों के लिए सैकड़ों चुनाव हो चुके हैं। हमारे यहाँ स्वतंत्र प्रेस है और एक स्वतंत्र न्यायपालिका है। इसके अलावा, यहाँ के लोगों की भाषायी विविधता या धार्मिक विविधता भी राष्ट्रीय एकता की राह में रुकावट नहीं बन पाई है।

परंतु दूसरी ओर यह भी सच है कि आज भी हमारे देश में गहरे मतभेद बने हुए हैं। संवैधानिक गारंटियों के बावजूद कुछ समुदाय आज भी हिंसा और भेदभाव से जूझ रहे हैं। ग्रामीण भारत के बहुत सारे भागों में अभी भी वे साझा जल स्रोतों, मंदिरों, मैदानों और अन्य सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल नहीं कर सकते। 

संविधान में दिए गए धर्मनिरपेक्ष आदर्शों के बावजूद बहुत सारे राज्यों में विभिन्न धार्मिक समूहों के बीच कई बार टकराव हो चुके हैं। और सबसे परेशानी की बात यह है कि इस बीच अमीर और गरीब का फासला लगातार बढ़ता गया है। भारत के कुछ भागों और कुछ समूहों को आर्थिक विकास से भारी फायदा हुआ है। वे आलीशान घरों में रहते हैं, मँहगे रेस्टोरेंट्स में खाना खाते हैं, अपने बच्चों को मँहगे निजी स्कूलों में भेजते हैं और विदेशों में छुट्टियों पर बेहिसाब पैसा उड़ाते हैं। 

दूसरी ओर बहुत सारे लोग आज भी गरीबी की रेखा से नीचे हैं। शहरी झुग्गी बस्तियों या बंजर देहात में रहने वाले ऐसे बहुत सारे लोग अपने बच्चों को स्कूल भी नहीं भेज पाते। हमारा संविधान कानून की नजर में सबको बराबर मानता है लेकिन असली जिंदगी में कुछ भारतीय औरों के मुकाबले ज्यादा बराबर हैं। 

स्वतंत्रता के समय तय की गई कसौटियों के हिसाब से देखें तो भारतीय गणतंत्र बहुत बड़ी सफलता का दावा नहीं कर सकता। लेकिन यह भी सच है कि वह विफल नहीं हुआ है।

बम्बई स्थित धारावी दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियों में से एक है। 
इसके दूर वाले सिरे पर आप गगनचुंबी इमारतें देख सकते हैं।
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