भूदान, ग्रामदान और रक्तहीन क्रांति


विनोबा भावे ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह में सबसे निष्ठावान सत्याग्रही की तरह भाग लिया था। महात्मा गांधी ने विनोबा भावे को अपना अध्यात्मिक उत्तराधिकारी घोषित किया था। उनकी गांधी जी के ग्राम स्वराज अवधारणा में भी गहरी आस्था थी।


गांधी जी की मौत के बाद उनके संदेश को लोगों तक पहुँचाने के लिए विनोबा भावे ने लगभग पूरे देश की पदयात्र की। एक बार जब वे आंध्र प्रदेश के एक गाँव में बोल रहे थे तो कुछ भूमिहीन गरीब ग्रामीणों ने उनसे अपने आर्थिक भरण-पोषण के लिए कुछ भूमि माँगी। 



विनोबा भावे ने उनसे तुरंत कोई वायदा तो नहीं किया परंतु उनको आश्वासन दिया कि यदि वे सहकारी खेती करें तो वे भारत सरकार से बात करके उनके लिए जमीन मुहैया करवाएँगे। अचानक श्री राम चन्द्र रेड्डी उठ खड़े हुए और उन्होंने 80 भूमिहीन ग्रामीणों को 80 एकड़ भूमि बाँटने की पेशकश की। 

इसे ‘भूदान’ के नाम से जाना गया।


बाद में विनोबा भावे ने यात्राएं की और अपना यह विचार पूरे भारत में फैलाया। कुछ जमींदारों ने, जो अनेक गाँवों के मालिक थे, भूमिहीनों को पूरा गाँव देने की पेशकश भी कीइसे ‘ग्रामदान’ कहा गया। कुछ जमींदारों ने तो भूमि सीमा कानून से बचने के लिए अपनी भूमि का एक हिस्सा दान किया था। 

विनोबा भावे द्वारा शुरू किए गए इस भूदान-ग्रामदान आंदोलन को ‘रक्तहीन क्रांति’ का भी नाम दिया गया।
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