भारतीय धर्मनिरपेक्षता (Indian Secularism) संविधान की नजर से
भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारतीय राज्य धर्मनिरपेक्ष रहेगा। हमारे संविधान के अनुसार, केवल धर्मनिरपेक्ष राज्य ही अपने उद्देश्यों को साकार करते हुए निम्नलिखित बातों का खयाल रख सकता है कि-
- कोई एक धार्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए
- कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ और
- राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीनेगा।
इस तरह के दबदबे को रोकने के लिए भारतीय राज्य कई तरह से काम करता है। पहला तरीका यह है कि वह खुद को धर्म से दूर रखता है। भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता है। भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय और दफ्तर जैसे सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नहीं की जाती है।
धार्मिक वर्चस्व को रोकने के लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षता का दूसरा तरीका है अहस्तक्षेप की नीति। इसका मतलब है कि सभी धर्मों की भावनाओं का सम्मान करने और धार्मिक क्रियाकलापों में दखल न देने के लिए, राज्य कुछ खास धार्मिक समुदायों को कुछ विशेष छूट देता है।
राज्य का हस्तक्षेप सहायता के रूप में भी हो सकता है। भारतीय संविधान धार्मिक समुदायों को अपने स्कूल और कॉलेज खोलने का अधिकार देता है। गैर-प्राथमिकता के आधार पर राज्य से उन्हें सीमित आर्थिक सहायता भी मिलती है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता (Indian Secularism) दूसरे लोकतांत्रिक देशों की धर्मनिरपेक्षता से किस तरह अलग है?
ऊपर दिए गए तीनों उद्देश्य दुनिया के अन्य धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देशों के संविधान में दिए गए उद्देश्यों से मिलते-जुलते हैं। अमेरिकी संविधान में हुए पहले संविधान संशोधन के जरिए विधायिका को ऐसे कानून बनाने से रोक दिया गया है जो धार्मिक संस्थानों का पक्ष लेते हों या धार्मिक स्वतंत्रता को रोकते हों। इसका मतलब है कि विधायिका किसी भी धर्म को राजकीय धर्म घोषित नहीं कर सकती, न ही विधायिका किसी एक धर्म को ज्यादा प्राथमिकता दे सकती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य और धर्म के पृथक्करण का मतलब है कि राज्य और धर्म, दोनों ही एक-दूसरे के मामलों में किसी तरह का दखल नहीं दे सकते।
शायद आप समझ गए होंगे कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता और अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता के बीच एक अहम फ़र्क है। ऐसा इसलिए है कि अमेरिकी धर्मनिरपेक्षता में धर्म और राज्य के बीच स्पष्ट अलगाव के विपरीत भारतीय धर्मनिरपेक्षता में राज्य को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने की छूट दी गई है।
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