क्रिकेट की कहानी का इतिहास


क्रिकेट इंग्लैंड में 500 साल पहले अलग-अलग नियमों के तहत खेले जा रहे गेंद-डंडे के खेलों से पैदा हुआ। ‘बैट’ अंग्रेजी का एक पुराना शब्द है, जिसका सीधा अर्थ है ‘डंडा’ या ‘कुंदा’।

सत्रहवीं सदी में एक खेल के रूप में क्रिकेट की आम पहचान बन चुकी थी और यह इतना लोकप्रिय हो चुका था कि रविवार को चर्च न जाकर मैच खेलने के लिए इसके दीवानों पर जुर्माना लगाया जाता था।

अठारहवीं सदी के मध्य तक बल्ले की बनावट हॉकी-स्टिक की तरह नीचे से मुड़ी होती थी। इसकी सीधी-सी वजह ये थी कि बॉल लुढ़का कर, अंडरआर्म, फ़ेंकी जाती थी और बैट के निचले सिरे का घुमाव बल्लेबाज को गेंद से संपर्क साधने में मदद करता था।
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इंग्लैंड के गाँवों से उठकर यह खेल कैसे और कब बड़े शहरों के विशाल स्टेडियम में खेला जानेवाला आधुनिक खेल बन गया, यह इतिहास का एक दिलचस्प विषय है, क्योंकि इतिहास का एक इस्तेमाल तो यही है कि वह हमें वर्तमान के बनने की कहानी बताए। खेल हमारी मौजूदा जिदगी का एक अहम हिस्सा है-इसके जरिए हम अपना मनोरंजन करते हैं, एक दूसरे से होड़ लेते हैं, खुद को फिट रखते हैं और अपनी सामाजिक तरफदारी भी व्यक्त करते हैं। 

अगर आज के दिन लाखों-करोड़ों हिन्दुस्तानी सब-कुछ छोड़-छाड़कर भारतीय टीम को टेस्ट या एकदिवसीय मैच खेलते देखने में जुट जाते हैं तो यह जानना जरूरी लगता है कि दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड में खोजा गया यह गेंद-डंडे का खेल आखिर भारतीय उपमहाद्वीप का जुनून कैसे बन गया। इस खेल की कहानी इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि एक ओर जहाँ उपनिवेशवाद व राष्ट्रवाद की बड़ी कहानी इससे जुड़ी है तो दूसरी ओर धर्म व जाति की राजनीति ने भी एक हद तक इसका स्वरूप गढ़ा।

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