क्रिकेट का ऐतिहासिक विकास


अठारहवीं व उन्नीसवीं सदी के इंग्लैंड के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास ने क्रिकेट को इसका अनोखा स्वरूप प्रदान किया, क्योंकि यह क्रिकेट का शुरुआती दौर था। मिसाल के तौर पर यह सिर्फ टेस्ट क्रिकेट का ही अजूबा है कि खेल पाँच दिन तक लगातार चले और कोई नतीजा न निकले। किसी भी अन्य आधुनिक खेल के खत्म होने में इससे आधा वक़्त भी नहीं लगता। 

फुटबॉल मैच करीब डेढ़ घंटे चलता है। गेंद व बल्ले से खेले जाने वाले बेसबॉल जैसे आधुनिक जमाने के लिहाज से अपेक्षाकृत लंबे खेल में भी उतने समय में नौ पारियाँ हो जाती हैं जितने में क्रिकेट के लघु संस्करण, यानी एकदिवसीय मैच, की एक पारी हो पाती है।

क्रिकेट की एक और दिलचस्प ख़ासियत यह है कि पिच की लंबाई तो तय 22 गज होती है पर मैदान का आकार-प्रकार एक-सा नहीं होता। हॉकी, फुटबॉल जैसे दूसरे टीम-खेलों में मैदान के आयाम तय होते हैं, क्रिकेट में नहीं। 

ऐडीलेड ओवल की तरह मैदान अंडाकार हो सकता है, तो चेन्नई के चेपॉक की तरह लगभग गोल भी। मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड में छक्का होने के लिए गेंद को काफी दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में थोड़े प्रयास में ही गेंद सीमा-रेखा के पार जाकर गिरती है।
ये भी जानिए....क्रिकेट की कहानी का इतिहास  
इन दोनों अजूबों के पीछे ऐतिहासिक कारण हैं। कायदा व कानून से बँधने वाले खेलों में क्रिकेट का नंबर अव्वल था, यानी, सॉकर व हॉकी जैसे बाकी खेलों के मुक़ाबले में क्रिकेट ने सबसे पहले अपने लिए नियम बनाए और वर्दियाँ भी अपनाईं। 

1760 व 1770 के दशक में जमीन पर लुढ़काने की जगह गेंद को हवा में लहराकर आगे पटकने का चलन हो गया था। इससे गेंदबाजों को गेंद की लंबाई का विकल्प तो मिला ही, वे अब हवा में चकमा भी दे सकते थे और पहले से कहीं तेज गेंदें फेंक सकते थे। इससे स्पिन और स्विंग के लिए नए दरवाजे खुले।जवाब में बल्लेबाजों को अपनी टाइमिंग व शॉट चयन पर महारत हासिल करनी थी। एक नतीजा तो फ़ौरन यह हुआ कि मुड़े हुए बल्ले की जगह सीधे बल्ले ने ले ली। 

गेंद का वजन अब साढ़े पाँच से पौने छः औंस तक हो गया और बल्ले की चौड़ाई चार इंच कर दी गई। यह तब हुआ जब एक बल्लेबाज ने अपनी पूरी पारी विकेट जितने चौड़े बल्ले से खेल डाली! पहला लेग बिफ़ोर विकेट (पगबाधा) नियम 1774 में प्रकाशित हुआ। लगभग उसी समय तीसरे स्टंप का चलन भी हुआ। 1780 तक बड़े मैचों की अवधि तीन दिन की हो गई थी और इसी साल छः सीवन वाली क्रिकेट बॉल भी अस्तित्व में आई।

उन्नीसवीं सदी में ढेर सारे बदलाव हुए। वाइड बॉल का नियम लागू हुआ, गेंद का सटीक व्यास तय किया गया, चोट से बचाने के लिए पैड व दस्ताने जैसे हिप़ फ़ाजती उपकरण उपलब्ध हुए, बाउंड्री की शुरुआत हुई, जबकि पहले हरेक रन दौड़ कर लेना पड़ता था, और सबसे अहम बात, ओवरआर्म बोलिंग कानूनी ठहरायी गई। पर अठारहवीं सदी में क्रिकेट पूर्व-औद्योगिक खेल रहा, जिसे परिपक्व होने के लिए औद्योगिक क्रांति, यानी 19वीं सदी के दूसरे हिस्से का इंतजार करना पड़ा। अपने इस ख़ास इतिहास के चलते क्रिकेट में भूत-वर्तमान दोनों की विशेषताएँ शामिल हैं।



ये भी जानिए....

No comments:



Recent Posts :

Powered by Blogger.