दूसरे विश्वयुद्ध का अंत, विश्व-राजनीति का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव


सन् 1945 में मित्र-राष्ट्रों और धुरी-राष्ट्रों के बीच दूसरे विश्व युद्ध (1939-1945) की समाप्ति हो गई।

मित्र-राष्ट्रों की अगुआई अमरीका, सोवियत संघ, ब्रिटेन और फ़्रांस कर रहे थे। धुरी-राष्ट्रों की अगुआई जर्मनी, इटली और जापान के हाथ में थी।

इस युद्ध में विश्व के लगभग सभी ताकतवर देश शामिल थे। यह युद्ध यूरोप से बाहर के इलाके में भी फैला और इसका विस्तार दक्षिण-पूर्व एशिया, चीन, बर्मा (अब म्यांमार) तथा भारत के पूर्वोत्तर के कुछ हिस्सों तक था। इस युद्ध में बड़े पैमाने पर जनहानि और धनहानि हुई। 1914 से 1918 के बीच हुए पहले विश्वयुद्ध ने विश्व को दहला दिया था, लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध इससे भी ज्यादा भारी पड़ा।

अगस्त 1945 में अमरीका ने जापान के दो शहर हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराये और जापान को घुटने टेकने पड़े। इसके बाद दूसरे विश्वयुद्ध का अंत हुआ।

परमाणु बम गिराने के अमरीकी फैसले के आलोचकों का तर्क है कि अमरीका इस बात को जानता था कि जापान आत्मसमर्पण करने वाला है। ऐसे में बम गिराना गैर-जरूरी था। इन आलोचकों का मानना है कि अमरीका की इस कार्रवाई का लक्ष्य सोवियत संघ को एशिया तथा अन्य जगहों पर सैन्य और राजनीतिक लाभ उठाने से रोकना था। वह सोवियत संघ के सामने यह भी जाहिर करना चाहता था कि अमरीका ही सबसे बड़ी ताकत है।

अमरीका के समर्थकों का तर्क था कि युद्ध को जल्दी से जल्दी समाप्त करने तथा अमरीका और साथी राष्ट्रों की आगे की जनहानि को रोकने के लिए परमाणु बम गिराना जरूरी था।

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दूसरे विश्वयुद्ध की समाप्ति से ही शीतयुद्ध की शुरुआत हुई। परस्पर विरोधी गुटों में शामिल देशों को समझना था कि आपसी युद्ध में जोखिम है क्योंकि संभव है कि इसकी वजह से दो महाशक्तियों के बीच युद्ध ठन जाए। जब दो महाशक्तियों और उनकी अगुआईवाले गुटों के बीच ‘पारस्परिक अपरोध’ का संबंध हो तो युद्ध लड़ना दोनों के लिए विध्वंसक साबित होगा।

इस संदर्भ में जिम्मेदारी का मतलब था संयम से काम लेना और तीसरे विश्वयुद्ध के जोखिम से बचना।

ये भी जानिए .... शीतयुद्ध, एक ऐसा युद्ध जिसमे मनुष्य जाति पर मंडराते खतरे को जैसे-तैसे संभाल लिया।


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