नयी दिल्ली से पहले और कितनी ‘दिल्लियाँ’ थीं?


आप दिल्ली को आधुनिक भारत की राजधानी के रूप में देखते रहे हैं। क्या आपको मालूम है कि यह शहर एक हजार साल से भी ज़्यादा समय तक राजधानी रह चुका है। इस दौरान इसमें छोटे-मोटे अंतराल भी आते रहे हैं। यमुना नदी के बाएँ किनारे पर लगभग साठ वर्ग मील के छोटे से क्षेत्रफल में कम से कम 14 राजधानियाँ अलग-अलग समय पर बसाई गईं।

आधुनिक नगर राज्य दिल्ली में घूमने पर इन सारी राजधानियों के अवशेष देखे जा सकते हैं। इनमें बारहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच बसाए गए राजधानी शहर सबसे महत्वपूर्ण थे।

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इन सारी राजधानियों में सबसे शानदार राजधानी शाहजहाँ ने बसाई थी। शाहजहाँनाबाद की स्थापना 1639 में शुरू हुई। इसके भीतर एक किला-महल और बगल में सटा शहर था। लाल पत्थर से बने लाल किले में महल परिसर बनाया गया था। इसके पश्चिम की ओर 14 दरवाजों वाला पुराना शहर था। चाँदनी चौक और फैज बाजार की मुख्य सड़कें इतनी चौड़ी थीं कि वहाँ से शाही यात्रएँ आसानी से निकल सकती थीं। चाँदनी चौक के बीचोंबीच नहर थी।

घने मौहल्लों और दर्जनों बाजारों से घिरी जामा मसजिद भारत की सबसे विशाल और भव्य मसजिदों में से एक थी। उस समय पूरे शहर में इस मसजिद से ऊँचा कोई स्थान नहीं था।

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शाहजहाँ के समय दिल्ली सूफी संस्कृति का भी एक अहम केंद्र हुआ करती थी। यहाँ कई दरगाह, ख़ानकाह, और ईदगाह थीं। बड़े-बड़े चौराहों, टेढ़ी-मेढ़ी गलियों, खामोश कुल-दे-सेक और जलधाराओं पर दिल्ली वालों को नाज था। शायद इसीलिए मीर तकी मीर ने कहा था, दिल्ली की सड़कें महज सड़कें नहीं हैं। वे तो किसी चित्रकार की एल्बम के पन्ने हैं।

लेकिन यह भी आदर्श शहर नहीं था। इसके ऐशो-आराम भी सिर्फ कुछ लोगों के हिस्से में आते थे। अमीर और गरीब के बीच फ़ासला बहुत गहरा था। हवेलियों के बीच गरीबों के असंख्य कच्चे मकान होते थे शायरी और नृत्य संगीत की रंग-बिरंगी दुनिया आमतौर पर सिर्फ मर्दों के मनोरंजन का साधन थी। त्योहारों और जलसे-जुलूसों में जब-तब टकराव भी फूट पड़ते थे, सो अलग।

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