1857 विद्रोह के बाद के साल
अंग्रेजों
ने 1859 के आखिर तक देश पर दोबारा नियंत्रण पा लिया था लेकिन अब वे पहले वाली
नीतियों के सहारे शासन नहीं चला सकते थे। अंग्रेजों ने जो अहम बदलाव किए वे
निम्नलिखित हैं:
1-
ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे
अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में सौंप दिए ताकि भारतीय मामलों को ज्यादा बेहतर
ढंग से सँभाला जा सके। ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत मंत्री के रूप में
नियुक्त किया गया। उसे भारत के शासन से संबंधित मामलों को सँभालने का जिम्मा सौंपा
गया। उसे सलाह देने के लिए एक परिषद का गठन किया गया जिसे इंडिया काउंसिल
कहा जाता था। भारत के गवर्नर-जनरल को वायसराय का ओहदा दिया गया। इस प्रकार
उसे इंगलैंड के राजा/रानी का निजी प्रतिनिधि घोषित कर दिया गया। फलस्वरूप, अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की
जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों में ले ली।
2-
देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उनके भूक्षेत्र पर
कब्जा नहीं किया जाएगा। उन्हें अपनी रियासत अपने वंशजों, यहाँ तक कि दत्तक पुत्रें को सौंपने की
छूट दे दी गई। लेकिन उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे ब्रिटेन की रानी
को अपना अधिपति स्वीकार करें। इस तरह, भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने की छूट दी
गई।
3-
सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपिय सिपाहियों की संख्या
बढ़ाने का फैसला लिया गया। यह भी तय किया गया कि अवध, बिहार, मध्य
भारत और दक्षिण भारत से सिपाहियों को भर्ती करने की बजाय अब गोरखा, सिखों और पठानों में से ज्यादा सिपाही
भर्ती किए जाएँगे।
4-
मुसलमानों की जमीन और संपत्ति बड़े पैमाने पर जब्त की गई। उन्हें संदेह व शत्रुता
के भाव से देखा जाने लगा। अंग्रेजों को लगता था कि यह विद्रोह उन्होंने ही खड़ा किया
था।
5-
अंग्रेजों ने फैसला किया कि वे भारत
के लोगों के धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करेंगे।
6-
भूस्वामियों और जमींदारों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को स्थायित्व
देने के लिए नीतियाँ बनाई गईं।
इस
प्रकार, 1857 के बाद इतिहास का एक नया चरण शुरू हुआ।
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