वर्चस्व (Hegemony) विश्व राजनीति और सैन्य शक्ति के अर्थ में
राजनीति एक ऐसी कहानी है जो शक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है। किसी भी आम आदमी की तरह हर समूह भी ताकत पाना और कायम रखना चाहता है। हम रोजाना बात करते हैं कि फलां आदमी ताकतवर होता जा रहा है या ताकतवर बनने पर तुला हुआ है।
विश्व राजनीति में भी विभिन्न देश या देशों का समूह ताकत पाने और कायम रखने की लगातार कोशिश करते हैं। यह ताकत सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक-शक्ति, राजनीतिक रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के रूप में होती है।
इसी कारण, अगर हम विश्व-राजनीति को समझना चाहें तो हमें विश्व के विभिन्न देशों के बीच शक्ति के बँटवारे को समझना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, शीतयुद्ध के समय (1945-1991) दो अलग-अलग गुटों में शामिल देशों के बीच ताकत का बँटवारा था। शीतयुद्ध के समय अमरीका और सोवियत संघ इन दो अलग-अलग शक्ति-केंद्रों के अगुआ थे। सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति अमरीका बचा।
जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था किसी एक महाशक्ति या कहें कि उद्धत महाशक्ति के दबदबे में हो तो बहुधा इसे ‘एकध्रुवीय’ व्यवस्था भी कहा जाता है। भौतिकी के शब्द ‘ध्रुव’ का यह एक तरह से भ्रामक प्रयोग है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो इसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा।
वर्चस्व सैन्य शक्ति के अर्थ में
‘हेगेमनी’ शब्द से किसी एक राज्य के नेतृत्व या प्रभुत्व का बोध होता है। मूलतः इस शब्द का प्रयोग प्राचीन यूनान के अन्य नगर-राज्यों की तुलना में एथेंस की प्रबलता को इंगित करने के लिए किया जाता था। इस प्रकार ‘हेगेमनी’ के पहले अर्थ का संबंध राज्यों के बीच सैन्य-क्षमता की बुनावट और तौल से है। ‘हेगेमनी’ से ध्वनित सैन्य-प्राबल्य का यही अर्थ आज विश्व-राजनीति में अमरीका की हैसियत को बताने में इस्तेमाल होता है।
अमरीका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी-चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज अमरीका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़। अनूठी इस अर्थ में कि आज अमरीका अपनी सैन्य क्षमता के बूते पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है। एकदम सही समय में अचूक और घातक वार करने की क्षमता है उसके पास। अपनी सेना को युद्धभूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रखकर वह अपने दुश्मन को उसके घर में ही पंगु बना सकता है।
अमरीकी सैन्य शक्ति का यह अनूठापन अपनी जगह लेकिन इससे भी ज्यादा विस्मयकारी तथ्य यह है कि आज कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। अमरीका से नीचे के कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा अपनी सैन्य क्षमता के लिए अकेले अमरीका करता है।
विश्व राजनीति में भी विभिन्न देश या देशों का समूह ताकत पाने और कायम रखने की लगातार कोशिश करते हैं। यह ताकत सैन्य प्रभुत्व, आर्थिक-शक्ति, राजनीतिक रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के रूप में होती है।
इसी कारण, अगर हम विश्व-राजनीति को समझना चाहें तो हमें विश्व के विभिन्न देशों के बीच शक्ति के बँटवारे को समझना पड़ेगा। उदाहरण के लिए, शीतयुद्ध के समय (1945-1991) दो अलग-अलग गुटों में शामिल देशों के बीच ताकत का बँटवारा था। शीतयुद्ध के समय अमरीका और सोवियत संघ इन दो अलग-अलग शक्ति-केंद्रों के अगुआ थे। सोवियत संघ के पतन के बाद दुनिया में एकमात्र महाशक्ति अमरीका बचा।
ये भी जानिए .... शीतयुद्ध (cold war), एक ऐसा युद्ध जिसने मनुष्य जाति पर मंडराते खतरे को जैसे-तैसे संभाल लिया
जब अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था किसी एक महाशक्ति या कहें कि उद्धत महाशक्ति के दबदबे में हो तो बहुधा इसे ‘एकध्रुवीय’ व्यवस्था भी कहा जाता है। भौतिकी के शब्द ‘ध्रुव’ का यह एक तरह से भ्रामक प्रयोग है। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो इसे ‘वर्चस्व’ (Hegemony) शब्द के इस्तेमाल से वर्णित करना ज्यादा उचित होगा।
वर्चस्व सैन्य शक्ति के अर्थ में
‘हेगेमनी’ शब्द से किसी एक राज्य के नेतृत्व या प्रभुत्व का बोध होता है। मूलतः इस शब्द का प्रयोग प्राचीन यूनान के अन्य नगर-राज्यों की तुलना में एथेंस की प्रबलता को इंगित करने के लिए किया जाता था। इस प्रकार ‘हेगेमनी’ के पहले अर्थ का संबंध राज्यों के बीच सैन्य-क्षमता की बुनावट और तौल से है। ‘हेगेमनी’ से ध्वनित सैन्य-प्राबल्य का यही अर्थ आज विश्व-राजनीति में अमरीका की हैसियत को बताने में इस्तेमाल होता है।
अमरीका की मौजूदा ताकत की रीढ़ उसकी बढ़ी-चढ़ी सैन्य शक्ति है। आज अमरीका की सैन्य शक्ति अपने आप में अनूठी है और बाकी देशों की तुलना में बेजोड़। अनूठी इस अर्थ में कि आज अमरीका अपनी सैन्य क्षमता के बूते पूरी दुनिया में कहीं भी निशाना साध सकता है। एकदम सही समय में अचूक और घातक वार करने की क्षमता है उसके पास। अपनी सेना को युद्धभूमि से अधिकतम दूरी पर सुरक्षित रखकर वह अपने दुश्मन को उसके घर में ही पंगु बना सकता है।
अमरीकी सैन्य शक्ति का यह अनूठापन अपनी जगह लेकिन इससे भी ज्यादा विस्मयकारी तथ्य यह है कि आज कोई भी देश अमरीकी सैन्य शक्ति की तुलना में उसके पासंग के बराबर भी नहीं है। अमरीका से नीचे के कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा अपनी सैन्य क्षमता के लिए अकेले अमरीका करता है।
No comments: