चूहों की पकड़-धकड { हनोई पर प्लेग का हमला }
जब फ़्रांसीसियों ने एक आधुनिक वियतनाम की स्थापना का काम शुरू किया तो उन्होंने फ़ैसला लिया कि वे हनोई का भी पुनर्निर्माण करेंगे। एक नए ‘आधुनिक’ शहर का निर्माण करने के लिए वास्तुकला के क्षेत्र में सामने आ रहे नवीनतम विचारों और आधुनिक इंजीनियरिंग निपुणता का इस्तेमाल किया गया।
हनोई के नवनिर्मित आधुनिक भाग में ब्यूबॉनिक प्लेग की महामारी फैल गई। बहुत सारे औपनिवेशिक देशों में इस बीमारी को फैलने से रोकने के लिए जो कदम उठाए गए उनके कारण भारी सामाजिक तनाव पैदा हुए। परंतु हनोई के हालात तो कुछ ख़ास ही थे।
हनोई के फ़्रांसीसी आबादी वाले हिस्से को एक खूबसूरत और साफ़-सुथरे शहर के रूप में बनाया गया था। वहाँ चौड़ी सड़कें थीं और निकासी का बढ़िया इंतजाम था। ‘देशी’ बस्ती में ऐसी कोई आधुनिक सुविधाएँ नहीं थीं। पुराने शहर का सारा कचरा और गंदा पानी सीधे नदी में बहा दिया जाता था। भारी बरसात या बाढ़ के समय तो सारी गंदगी सड़कों पर ही तैरने लगती थी। असल में प्लेग की शुरुआत ही उन चीजों से हुई थी जिनको शहर के फ़्रांसीसी भाग में स्वच्छ परिवेश बनाए रखने के लिए लगाया गया था।
शहर के आधुनिक भाग में लगे विशाल सीवर आधुनिकता का प्रतीक थे। यही सीवर चूहों के पनपने के लिए भी आदर्श साबित हुए। ये सीवर चूहों की निर्बाध आवाजाही के लिए भी उचित थे। इनमें चलते हुए चूहे पूरे शहर में बेखटके घूमते थे। और इन्हीं पाइपों के रास्ते चूहे फ़्रांसीसियों के चाक-चौबंद घरों में घुसने लगे। अब क्या किया जाए ?
इस घुसपैठ को रोकने के लिए 1902 में चूहों को पकड़ने की मुहिम शुरू की गई। इस काम के लिए वियतनामियों को काम पर रखा गया और उन्हें हर चूहे के बदले ईनाम दिया जाने लगा। हजारों की संख्या में चूहे पकड़े जाने लगे। उदाहरण के लिए, 30 मई को 20,000 चूहे पकड़े गए। इसके बावजूद चूहे खत्म होने का नाम ही न लेते थे।
वियतनामियों को चूहों के शिकार की इस मुहिम के जरिए सामूहिक सौदेबाजी का महत्त्व समझ में आने लगा था। जो लोग सीवरों की गंदगी में घुस कर काम करते थे उन्होंने पाया कि अगर वे एकजुट हो जाएँ तो बेहतर मेहनताने के लिए सौदेबाजी कर सकते हैं। उन्होंने इस स्थिति से फ़ायदा उठाने के एक से एक नायाब तरीके भी ढूँढ़ निकाले।
मजदूरों को पैसा तब मिलता था जब वे यह साबित कर देते थे कि उन्होंने चूहे को पकड़ कर मार डाला है। सबूत के तौर पर उन्हें चूहे की पूँछ लाकर दिखानी पड़ती थी। इस प्रावधान का फ़ायदा उठाते हुए मजदूर ज्यादा पैसा कमाने के लिए चूहे को पकड़ कर उसकी पूँछ तो काट लेते थे पर चूहे को जिदा छोड़ देते थे ताकि वे कभी खत्म न हों और उनको पकड़ने का सिलसिला ऐसे ही चलता रहे। कुछ लोगों ने तो पैसे कमाने के लिए बकायदा चूहे पालना शुरू कर दिया था।
निर्बलों के इस प्रतिरोध और असहयोग से तंग आकर आखिरकार फ़्रांसीसियों ने चूहे के बदले पैसे देने की योजना ही बंद कर दी। लिहाजा, ब्यूबॉनिक प्लेग खत्म नहीं हुआ। न केवल 1903 में बल्कि अगले कुछ सालों तक यह बीमारी पूरे इलाके में फैल गई।
चूहों के आतंक की यह कहानी कई मायनों में फ़्रांसीसी सत्ता की सीमा और सभ्यता प्रसार के उनके मिशन में निहित अंतर्विरोधों को सामने ला देती है। चूहे पकड़ने वालों की हरकतों से हमें पता चलता है कि वियतनाम के लोग रोज़मर्रा की जिंदगी में उपनिवेशवाद का किस-किस तरह से विरोध कर रहे थे।
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